शनिवार, 8 दिसंबर 2007

मजहब नहीं मरता

कविता
मजहब के नाम पर जब होते हैं दंगे
चालाक बने फिरते हैं धूर्त लफंगे
किसी मजहबी दंगे में कोई
हिन्दू नहीं मरता
न सिख ही मरता है
न कोई मुसलमा ही मरता
मरता है कोई तो वह आदमी होता है
किसी मजहबी दंगे में
कोई मजहब नहीं मरता ।
दिवेश कुमार शर्मा ,अमन नगर PATIALA

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